धागा

अपने दृढ़ निश्चय को याद करते हुए मैंने दोबारा अपनी आंखें मीच लीं। मगर नींद भी जैसे अपनी ही ज़िद पकड़ कर बैठी थी। रात में जल्दी सो जाने की एक और नाकाम कोशिश से उब कर मैंने आंखें खोल ही लीं। कमरे की लाइट जलाई और बिस्तर पर बैठी अपने किताबों के भंडार को देखती रही। रात के इस सूनेपन में तरीके से लगी हुई किताबों से भरा शेल्फ काफी मनमोहक प्रतीत हो रहा था। मुझे मालूम ही नहीं हुआ कि कब उन किताबों के आकर्षण ने मुझे बिस्तर से उतार कर शेल्फ के सामने ला कर खड़ा कर दिया।

कुछ देर के विचार के बाद मैंने शेल्फ के पीछे से प्रेमचंद की एक किताब निकाली। किताब के कवर पर जमी धूल इस बात का प्रमाण थी कि इसे कुछ अरसे से छुआ नहीं गया था। परन्तु क्यूं? क्यूं मैंने प्रेमचंद की किताब शेल्फ में पीछे कहीं छुपा कर रखी थी, अपनी आंखों से दूर, अपनी पहुंच से दूर। अचानक इस सवाल का उत्तर मेरे ज़हन में उतरा और मेरे पूरे शरीर में सिहरन सी होने लगी।

मै डगमगाते क़दमों से बिस्तर की ओर गई और एक कम्बल ओढ़ कर बैठ गई। किताब मेरे हाथ में थी और मेरा दिमाग बीते वक़्त का भ्रमण कर रहा था। मै किसी खाली मैदान के इस तरफ खड़ी थी और इस वक़्त मुझे स्थिर रहने या मैदान के दूसरी तरफ छलांग लगाने के बीच किसी एक को चुनना था। मैंने एक गहरी सांस ली, किताब को ठीक बीच वाले पन्ने पर खोला और छलांग लगा दी।

गहरे नीले रंग का धागा किताब के बीच से मुझे ताक रहा था। मैंने कांपती उंगलियों से उसे उठाया और बड़ी नज़ाकत से अपनी हथेली पर सजा दिया। अचानक कहीं से गुलाब की मीठी खुशबू मेरे कमरे में आ कर भर गई। आंखें बंद कर मैंने एक गहरी सांस में उस गुलाबी एहसास को अपने भीतर खींच लिया। जब आंखें खोलीं, तो देखा कि मेरे कमरे में एक और कमरा धुंधला सा नज़र आ रहा है जैसे किसी ने सफेद चादर टांग दी हो और उस पर कोई फिल्म चला दी हो। 

कमरे में दो लोग दिखाई दे रहे थे। मै इस कमरे से अच्छी तरह परिचित थी। यह कमरा कितने सालों तक दुनिया के शोर से बचकर छुप जाने के लिए मेरा आश्रय रहा था। कमरे में एक खिड़की खुली हुई थी जिससे बाहर आंगन में खिले गुलाब के फूल नज़र आ रहे थे। कमरे में मौजूद वो दो लोग बिस्तर पर बैठे अपने ही काम में मगन थे। लड़के ने गहरे नीले रंग की कमीज़ पहनी हुई थी और वो अपने किसी नए गाने के लिरिक्स लिख रहा था। उसकी गोद में सिर रख कर एक लड़की लेटी हुई थी जिसके हाथों में एक किताब थी, प्रेमचंद की किताब। 

उस श्रण मुझे ऐसा लगा जैसे मै शीशे में अपने प्रतिबिंब को देख रही हूं। मगर शीशे के दूसरी तरफ़ जो लड़की उस कमरे में बिस्तर पर लेटी प्रेमचंद की किताब पढ़ रही थी, वह सिर्फ रंग रूप में मेरी तरह थी। समय के थपेड़ों ने मुझे उस लड़की से दूर कहीं ला कर खड़ा कर दिया था। और वह लड़का, जिसे मैंने कभी बहुत करीब से जाना था, आज बिल्कुल अंजान प्रतीत हो रहा था।

उस लड़की के माथे पर रह रह कर लड़के की कमीज़ का कोई धागा लहरा रहा था। किताब में आंखें गड़ाए लड़की बार बार उस धागे को अपने माथे से हटाती रही। कुछ देर बाद तंग आ कर उसने अपनी किताब बिस्तर पर रखी। लड़की का सिर अभी भी लड़के की गोद में था। कुछ शरारत के हाव भाव लड़की के चेहरे पर खेलने लगे। उसने लड़के की कमीज़ को पकड़ कर उसे अचानक अपनी तरफ खींचा।  इससे पहले कि लड़का कुछ समझ पाता, लड़की ने कमीज़ से निकलता धागा अपने दांतों से काट दिया। लड़के को वापस पीछे धकेलते हुए उसने अपनी किताब उठाई और बीच वाले पन्ने में उस धागे को संभाल कर रख दिया। यह सब देख कर लड़के के चेहरे पर प्रेम की मुस्कान खिल उठी।

उस मुस्कान को देखते ही मैंने वो धागा वापिस किताब में रख कर उसे बंद कर दिया। किताब बंद करते ही मेरे कमरे में चलती वो फिल्म और उसमें दिख रहा कमरा - सब गायब हो गए। किन्तु यादों के समुद्र ने इस तरह मेरी वर्तमान की नाव को घेर लिया था कि समुद्र में डूब जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। और ऐसी उफनती लहरों से लड़ना व्यर्थ मालूम हो रहा था। उस समय में मुझे लहरों के साथ चलना ही बेहतर लगा।

मैंने अपना फोन उठाया और इंस्टाग्राम पर उसका नाम ढूंढा। वो एक अच्छा संगीतकार बन गया था इसलिए उसका नाम ज़्यादा तलाशना नहीं पड़ा। मै कुछ देर तक उसकी प्रोफ़ाइल को देखती रही। बहुत तलाशने पर भी मुझे उसकी प्रोफ़ाइल में वो शिव नहीं मिला जिसे मै जानती थी। 

मैंने किताब को एक बार फिर बीच वाले पन्ने पर खोला, धागे को ठीक तरह से पन्ने पर रखा और उसकी एक तस्वीर अपने फोन से ले ली। इस उम्मीद में कि शायद सोशल मीडिया के इस पर्दे के पीछे पुराना शिव होगा, मैंने ये तस्वीर उसको भेज दी। तस्वीर भेजते ही ऐसा लगा जैसे यादों के समुद्र का पानी वर्तमान की नाव से उतर गया था। 

किताब को बंद कर मैंने वापिस शेल्फ में रख दिया, मगर इस बार उसे किसी और किताब के पीछे छिपाया नहीं। अपने कमरे की लाइट बंद करके मैंने फोन को मेज़ पर रखा ही था कि अचानक उसमें एक नोटिफिकेशन आया। नोटिफिकेशन इंस्टाग्राम का था, शिव के नाम का था। खोल कर देखा तो फोन की स्क्रीन पर उसका मेसेज था, "Hi!" 

मैंने एक दफा फिर खुद को उस मैदान में पाया, मगर इस बार मै मैदान के इस पार या उस पार नहीं थी। मै मैदान के बिल्कुल बीचो बीच खड़ी थी और ये तय करना मुश्किल था कि इस बार छलांग किस दिशा में लगानी चाहिए।

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

Undying determination will help us achieve our goals in life

Helen

I'm not a virgin. Are you?