बापूजी

आज फिर कुनाल बापूजी से झगड़ कर ऑफिस गया था। नाराज़गी जताने के लिए बापूजी ने भी अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर लिया और कोने में पड़ी कुर्सी पर जा कर बैठ गए। बड़े शहर के आलीशान घर के इस बड़े कमरे में एक ये छोटा सा कोना ही था जिसे वो अपना कह सकते थे। उन्होंने सामने मेज पर रखी अपनी फटी पुरानी डायरी को उठाया और बीच के किसी पन्ने को खोल कर पढ़ने लगे। तभी मेज़ पर रखी उनकी छोटी सी अलार्म घड़ी उन्हें ज़ोर ज़ोर से पुकारने लगी। उन्होंने अपनी डायरी को संभाल कर नीचे रखा, रेडियो का बटन दबाकर उसे ऑन किया और कोई चैनल सेट करने लगे। 

छ: साल पहले अपनी मां के देहांत के बाद कुनाल बापूजी को गांव से शहर ले आया था। ये फैसला बापूजी के प्रति स्नेह से कम और लोगों के तानों के डर से ज़्यादा ओत - प्रोत था। शहर आने से पहले कुनाल ने गांव के घर के साथ साथ घर की सारी चीज़ें भी बेच दी थी। बापूजी कुनाल से लड़ झगड़ कर सिर्फ अपनी दो कीमती चीज़ें शहर ला पाए थे - रेडियो और डायरी। रेडियो - जो उन्हें उनकी पत्नी से सालों पहले उपहार में मिला था और डायरी - जिसमें वह सारी रूमानी पंक्तियां कैद थी जो इतने सालों में उन्होंने अपनी पत्नी के लिए लिखी थी। रोज़ सुबह आंगन में जब कोई खूबसूरत गीत रेडियो पर सुनाई देता था, तो बापूजी की पत्नी रसोई से दौड़ी चली आती थी। रेडियो में बजते गाने के बीच बापूजी अपनी डायरी में से कोई पंक्ति अपनी पत्नी को पढ़ कर सुनाते थे और उनकी पत्नी धीमे से मुस्कुराती थी। 

अब ना तो उनकी पत्नी थी और ना ही वो मुस्कुराहट जिसे देख कर बापूजी को लिखने की ऊर्जा मिलती थी। कुछ था तो बस ये रेडियो शो, जो ठीक सुबह दस बजे आया करता था। दो घंटे के इस रेडियो शो के दौरान बापूजी इस भीड़ भाड़ वाले शहर में महसूस होने वाले अकेलेपन को भूल जाते थे। शहर में आने के कुछ वक़्त बाद अपनेपन की तलाश में एक दिन बापूजी ने यूं ही रेडियो का बटन दबा दिया। रेडियो से किसी लड़की की आवाज़ आयी जो कोई शायरी पढ़ रही थी। बापूजी को अपनी डायरी और उसमे लिखी पंक्तियां याद हो आयीं। कुछ देर और सुनने पर बापूजी को समझ आया कि दो घंटे के इस रेडियो शो में वो लड़की लोगों की भेजी हुईं कविताएं, शायरी इत्यादि पढ़ा करती है। उनके बेरंग जीवन में जैसे धूप की पीली रोशनी चमक उठी थी। तभी से बापूजी किसी दवाई की तरह रोज़ इस शो को सुना करते थे, इस इंतज़ार में कि उनकी भेजी हुईं पंक्तियां रेडियो वाली लड़की पढ़ कर सुनाएगी।

आज भी बापूजी ने इसी उम्मीद में रेडियो का चैनल सेट किया। रेडियो से उस लड़की की आवाज़ सुनते ही उनके चेहरे की झुर्रियों के बीच एक मुस्कुराहट खेलने लगी। कुछ देर इंतज़ार करने के बाद उनके कमरे में रेडियो से सुनाई देती उनकी लिखी पंक्तियां गूंज गईं। उन्होंने आखें बंद की तो उनकी नज़रों के आगे उनका आंगन, पत्नी और बीती यादें किसी फिल्म की तरह चलने लगीं।

शाम को कुनाल ऑफिस से घर आया तो सीधे बापूजी के कमरे की ओर गया। कमरे में जा कर देखा कि बापूजी अपने बिस्तर पर रेडियो को अपने सीने से लगाए लेटे हैं। कुनाल आहिस्ते से उनके पास गया और उन्हें धीमे से नींद से जगा कर बोला,"माफ कर दीजिए बापूजी, मै सुबह आप पर थोड़ा ज़्यादा ही गुस्सा कर गया।" बापूजी धीरे से उठ कर अपने बिस्तर पर बैठे और शांत स्वर में बोले,"कोई बात नहीं बेटा! अब तो वैसे भी ये रेडियो और डायरी ही बची हैं जिनसे थोड़ा अपनापन लगता है, इनके सहारे ही जीवन का आखिरी पड़ाव कट रहा है बेटा।" बापूजी ने ये बात बिल्कुल साफ मन से कही थी। मगर कुनाल को इसमें ताने की तीखी बू आई और वो अपना आपा खो बैठा।

उसने बापूजी के हाथ से रेडियो छीन कर ज़मीन पर फेंक दिया। रेडियो और बापूजी का दिल - दोनो एक साथ टूट गए। बापूजी हक्के - बक्के से खड़े टूटे हुए रेडियो को देखते रहे। कुनाल की चीखती आवाज़ उनके कानों में जा कर भी नहीं पहुंच पा रही थी। उन्होंने धीमे से झुक कर रेडियो के टूटे टुकड़े उठाए और अपनी मेज़ पर संभाल कर रख दिए। अपनी कुर्सी पर बेजान से बैठ कर वो फुट फुट कर रोने लगे। उन्हें ऐसा लग रहा था मानो उनकी पत्नी से जुड़ी हुई आखिरी डोर भी किसी ने काट दी हो।

कुछ हफ्तों बाद बापूजी स्वर्ग सिधार गए। उनके मरने पर शहर के वे सभी लोग आए जिन्होंने बापूजी से कभी दो पल बात भी नहीं की थी। वे तो बस कुनाल के आगे अपनी हाजिरी लगाने आए थे। इसी भीड़ के बीच से बापूजी के बारे में पूछती हुई एक लड़की घर में आई। एक आदमी ने उन्हें बताया कि बापूजी का देहांत हो गया है। उस लड़की ने पूछा,"क्या मैं उनके परिवार के किसी सदस्य से मिल सकती हूं?" उस आदमी ने कुनाल की तरफ इशारा करते हुए कहा,"ये उनके बेटे हैं।" 

उस लड़की ने कुनाल के पास जा कर कहा,"नमस्ते! मै आर.जे. नैना हूं। रेडियो पर मेरा एक शो आता है - 'आज दिल शायराना '। आपके बापूजी हमारे शो के सबसे प्रसिद्ध शायर थे। वे इकलौते ऐसे शायर थे जिनकी भेजी हर पंक्ति, हर शायरी का शो के लिए चयन हुआ। कुछ हफ्तों से उनकी कोई शायरी हमारे पास नहीं आई। हमारे पास कईं लोगों के फोन आए जो इस शो को रोज़ आपके बापूजी की शायरी के लिए ही सुनते थे। उनकी इतनी पूछ के कारण बड़ी मुश्किल से हमने उनका पता मालूम किया। बहुत दुख हुआ ये जान कर कि उनका देहांत हो गया और मुझे यकीन है कि उनके फैंस को भी ये खबर सुन कर बहुत दुख होगा।" 

ये कह कर नैना ने कुनाल को एक पुस्तक दी और कहा,"ये हमारी तरफ से एक छोटी सी भेंट है आपके बापूजी के नाम। उनकी पंक्तियों का आना जब बंद हो गया, तो उन्हें रेडियो से जुड़े रहने के लिए प्रोत्साहन के रूप में हमें ये विचार आया। इस किताब में उनकी वे सभी रचनाएं उसी क्रम में हैं जिस क्रम में उन्होंने इतने सालों तक हमें भेजी। उम्मीद है ये आपको पसंद आएगी।" 

कुनाल ने पुस्तक को और उस पर लिखे बापूजी के नाम को ध्यान से देखा। कुनाल को मालूम ही नहीं था कि उसके बापूजी लिखा करते थे। उसने उस पुस्तक का आखिरी पन्ना खोला और सबसे आखिरी पंक्ति पढ़ने लगा - 
'ज़िन्दगी का यही फन है,
एक उम्र के बाद अकेलापन है,
किसी के लिए ये महज़ एक यंत्र है,
मेरा रेडियो मेरे लिए जीने का मंत्र है!'

नैना ने आखिरी पन्ना खुला देखा और कहा,"ये आखिरी पंक्तियां हमारी पूरी टीम को बेहद पसंद आई थी। उस वक़्त किसी को मालूम नहीं था कि ये पंक्तियां आखिरी होंगी। इनसे उनका रेडियो के प्रति प्रेम साफ झलकता है।"

नैना की ये बात सुन कर कुनाल बापूजी के कमरे में गया और मेज़ पर रखे टूटे हुए रेडियो के आगे जा कर खड़ा हो गया। उसकी आंखों के आगे वो दिन घूमने लगा जब उसने बापूजी से उनका रेडियो छीना था और उसे तोड़ दिया था। उस दिन अंजाने में ही सही मगर कुनाल ने बापूजी के जीने की इच्छा को भी तोड़ दिया था। उसकी आंखें भर आई और कानों में बापूजी की आखिरी पंक्तियां बार बार गूंजती रही।

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