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Showing posts from March, 2022

धागा

अपने दृढ़ निश्चय को याद करते हुए मैंने दोबारा अपनी आंखें मीच लीं। मगर नींद भी जैसे अपनी ही ज़िद पकड़ कर बैठी थी। रात में जल्दी सो जाने की एक और नाकाम कोशिश से उब कर मैंने आंखें खोल ही लीं। कमरे की लाइट जलाई और बिस्तर पर बैठी अपने किताबों के भंडार को देखती रही। रात के इस सूनेपन में तरीके से लगी हुई किताबों से भरा शेल्फ काफी मनमोहक प्रतीत हो रहा था। मुझे मालूम ही नहीं हुआ कि कब उन किताबों के आकर्षण ने मुझे बिस्तर से उतार कर शेल्फ के सामने ला कर खड़ा कर दिया। कुछ देर के विचार के बाद मैंने शेल्फ के पीछे से प्रेमचंद की एक किताब निकाली। किताब के कवर पर जमी धूल इस बात का प्रमाण थी कि इसे कुछ अरसे से छुआ नहीं गया था। परन्तु क्यूं? क्यूं मैंने प्रेमचंद की किताब शेल्फ में पीछे कहीं छुपा कर रखी थी, अपनी आंखों से दूर, अपनी पहुंच से दूर। अचानक इस सवाल का उत्तर मेरे ज़हन में उतरा और मेरे पूरे शरीर में सिहरन सी होने लगी। मै डगमगाते क़दमों से बिस्तर की ओर गई और एक कम्बल ओढ़ कर बैठ गई। किताब मेरे हाथ में थी और मेरा दिमाग बीते वक़्त का भ्रमण कर रहा था। मै किसी खाली मैदान के इस तरफ खड़ी थी और इस वक़्त मु

बापूजी

आज फिर कुनाल बापूजी से झगड़ कर ऑफिस गया था। नाराज़गी जताने के लिए बापूजी ने भी अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर लिया और कोने में पड़ी कुर्सी पर जा कर बैठ गए। बड़े शहर के आलीशान घर के इस बड़े कमरे में एक ये छोटा सा कोना ही था जिसे वो अपना कह सकते थे। उन्होंने सामने मेज पर रखी अपनी फटी पुरानी डायरी को उठाया और बीच के किसी पन्ने को खोल कर पढ़ने लगे। तभी मेज़ पर रखी उनकी छोटी सी अलार्म घड़ी उन्हें ज़ोर ज़ोर से पुकारने लगी। उन्होंने अपनी डायरी को संभाल कर नीचे रखा, रेडियो का बटन दबाकर उसे ऑन किया और कोई चैनल सेट करने लगे।  छ: साल पहले अपनी मां के देहांत के बाद कुनाल बापूजी को गांव से शहर ले आया था। ये फैसला बापूजी के प्रति स्नेह से कम और लोगों के तानों के डर से ज़्यादा ओत - प्रोत था। शहर आने से पहले कुनाल ने गांव के घर के साथ साथ घर की सारी चीज़ें भी बेच दी थी। बापूजी कुनाल से लड़ झगड़ कर सिर्फ अपनी दो कीमती चीज़ें शहर ला पाए थे - रेडियो और डायरी। रेडियो - जो उन्हें उनकी पत्नी से सालों पहले उपहार में मिला था और डायरी - जिसमें वह सारी रूमानी पंक्तियां कैद थी जो इतने सालों में उन्होंने अपनी पत्नी

आखिरी पैग़ाम

  "ममता, कैसी हो तुम? अपना ख्याल ठीक तरह से रख रही हो ना? डॉक्टर से जो नई दवाई दिलवाई थी, वो आराम दे रही है ना? मै अच्छा हूं! तुम्हारी और राजू की बड़ी याद आती है। पता है, हमारे साथ एक नया लड़का जुड़ा है - रवि। रवि को भी राजू की ही तरह आम के आचार का बहुत शौक है। तुमने जो आचार दिया था, रवि दो महीने के अंदर ही सारा चट कर गया। राजू जब बड़ा हो जाएगा तो उसे भी हम फौजी बनाएंगे। बड़े होने से याद आया, इस बार भी राजू का जन्मदिन तुम्हे अकेले ही मनाना होगा। कश्मीर की घाटियों पर आतंकी हमला बढ़ रहा है। हमें भी कुछ महीनों के लिए वहीं तैनात किया जाएगा। इस कारण से मैं इस साल भी छुट्टियां बिताने गांव नहीं आ पाऊंगा! अगर मुमकिन हो सका तो कश्मीर की वादियों से तुम्हें चिठ्ठी ज़रूर भेजूंगा। वैसे सुना है कश्मीर की वादियों में जितनी सुंदरता है, उतनी ही ठंड भी। सोचते ही तुम्हारे हाथ से बुने स्वेटर की कमी खल उठती है। तुम मेरे लिए एक स्वेटर बुन कर तैयार रखना। कश्मीर से वापिस आ कर मैं तुम्हें और राजू को शिमला ले जाऊंगा। तुम्हारी उड़न खटोले पर बैठने की बड़ी इच्छा है ना? चिठ्ठी के साथ कुछ पैसे भी भेज रहा हूं

Helen

  "I can't believe you fell in love with 'me' - the weirdo", I said with teary eyes. "Who wouldn't fall in love with you?!", he said softly and brushed away the hair from my face as his lips touched mine. I sat there on the couch with a tub of popcorn in my hand as he went over to the cupboard in my living room, and started reading the titles on the movie tapes. I had a fascination for thrillers and horror movies ever since I was a child. Consequently, I had a huge stock of movies, which ranged from 80's classics to recent releases. He returned with three tapes in his hands - all classic horrors and slid one of them in the video player. I had wanted it to be a cliché date - movie at the theatre with candle light dinner later. But he insisted on coming to my place for a horror movie marathon. By the time the marathon ended, it was 2AM. We were both so tired that we immediately went to sleep. I was woken up by his shaky voice, "Stacy, wake up!